UPSC मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन III
• भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोजगार से संबंधित विषय।
समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय |
सरकारी बजट।
मुख्य फसलें – देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न – सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली-कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएं; किसानों की सहायता के लिए ई-प्रौद्योगिकी।
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली-उददेश्य, कार्य, सीमाएं, सुधार; बफर स्टॉक तथा खादय सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु-पालन संबंधी अर्थशास्त्र
भारत में खादय प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग – कार्यक्षेत्र एवं महत्व, स्थान, ऊपरी और नीचे की अपेक्षाएं, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन।
भारत में भूमि सुधार।
उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औदयोगिक नीति में परिवर्तन तथा औदयोगिक विकास पर इनका प्रभाव।
बुनियादी ढांचा : ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
निवेश मॉडल।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी – विकास एवं अनुप्रयोग और रोजमर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मैं भारतीयों की उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कम्प्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौदधिक सम्पदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध मैं जागरूकता।
संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
आपदा और आपदा प्रबंधन
विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध।
आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्वों की भूमिका।
संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों मैं मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका , साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
सीमावर्ती क्षेत्रों मैं सुरक्षा चुनौतियां एवं उनका प्रबंधन – संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध!
विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएं तथा उनके अधिदेश।
सिलेबस विस्तार मे,
1.भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोजगार से संबंधित विषय।
1. भारतीय अर्थव्यवस्था:
विकास और प्रगति: आर्थिक विकास के विभिन्न चरण, विकास के मापदंड, और विकास के मॉडल।
वित्तीय समावेशन: वित्तीय समावेशन की नीतियाँ और योजनाएँ, जैसे जन धन योजना, मुद्रा योजना।
कृषि और उद्योग: कृषि और उद्योग के विकास के लिए नीतियाँ और योजनाएँ, जैसे हरित क्रांति, मेक इन इंडिया।
सेवा क्षेत्र: सेवा क्षेत्र का विकास और योगदान, जैसे आईटी और बीपीओ उद्योग।
2. योजना और संसाधनों को जुटाना:
योजना आयोग और नीति आयोग: योजना आयोग का इतिहास और भूमिका, नीति आयोग का गठन और कार्य।
वित्तीय संसाधन: वित्तीय संसाधनों का जुटाना और प्रबंधन, जैसे कराधान, सार्वजनिक ऋण।
बजट और वित्तीय प्रबंधन: केंद्रीय और राज्य बजट, वित्तीय घाटा, और वित्तीय अनुशासन।
3. प्रगति और विकास:
सतत विकास: सतत विकास के लक्ष्य और नीतियाँ, जैसे स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन।
सामाजिक विकास: शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा के लिए नीतियाँ और योजनाएँ।
आर्थिक सुधार: आर्थिक सुधार के विभिन्न चरण, जैसे उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण।
4. रोजगार:
रोजगार के प्रकार: संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार, स्वरोजगार और उद्यमिता।
रोजगार योजनाएँ: रोजगार सृजन के लिए सरकारी योजनाएँ, जैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)।
श्रम कानून: श्रम कानून और श्रमिकों के अधिकार, जैसे न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, श्रम संहिता।
2.समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय |
1. समावेशी विकास:
परिभाषा: समावेशी विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो समाज के सभी वर्गों को लाभान्वित करे, विशेषकर कमजोर और वंचित वर्गों को।
उद्देश्य: आर्थिक असमानता को कम करना, सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना, और सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।
नीतियाँ और योजनाएँ: समावेशी विकास के लिए विभिन्न सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ, जैसे कि प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)।
2. समावेशी विकास से उत्पन्न विषय:
आर्थिक असमानता: समावेशी विकास के प्रयासों के बावजूद आर्थिक असमानता की चुनौतियाँ।
सामाजिक न्याय: समावेशी विकास के माध्यम से सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के प्रयास।
शिक्षा और स्वास्थ्य: समावेशी विकास में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की भूमिका।
रोजगार: समावेशी विकास के लिए रोजगार सृजन और स्वरोजगार के अवसर।
पर्यावरणीय स्थिरता: समावेशी विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित करना।
3. समावेशी विकास के उदाहरण:
भारत: भारत में समावेशी विकास के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाएँ और उनके प्रभाव।
अन्य देश: अन्य देशों में समावेशी विकास के उदाहरण और उनसे सीखने योग्य बातें।
3.सरकारी बजट।
1. सरकारी बजट का परिचय:
परिभाषा: सरकारी बजट एक वित्तीय दस्तावेज है जिसमें सरकार की आय और व्यय का विवरण होता है।
उद्देश्य: राजस्व संग्रह, वित्तीय प्रबंधन, और विकास योजनाओं के लिए धन आवंटित करना।
2. बजट के प्रकार:
राजस्व बजट: इसमें सरकार की आय और राजस्व व्यय का विवरण होता है।
पूंजी बजट: इसमें सरकार की पूंजीगत आय और व्यय का विवरण होता है, जैसे कि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए खर्च।
3. बजट प्रक्रिया:
बजट निर्माण: वित्त मंत्रालय द्वारा बजट का प्रारूप तैयार किया जाता है।
बजट प्रस्तुति: वित्त मंत्री द्वारा संसद में बजट प्रस्तुत किया जाता है।
बजट अनुमोदन: संसद द्वारा बजट पर चर्चा और अनुमोदन किया जाता है।
4. बजट के प्रमुख घटक:
राजस्व प्राप्तियाँ: कर राजस्व (आयकर, वस्तु एवं सेवा कर, आदि) और गैर-कर राजस्व (लाइसेंस शुल्क, लाभांश, आदि)।
राजस्व व्यय: सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, सब्सिडी, आदि।
पूंजी प्राप्तियाँ: ऋण, विनिवेश, आदि।
पूंजी व्यय: बुनियादी ढांचे का विकास, रक्षा उपकरणों की खरीद, आदि।
5. बजट के प्रभाव:
आर्थिक विकास: बजट के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाता है।
सामाजिक कल्याण: बजट में सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए धन आवंटित किया जाता है।
वित्तीय स्थिरता: बजट के माध्यम से वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित की जाती है।
6. बजट से संबंधित चुनौतियाँ:
वित्तीय घाटा: बजट घाटे को नियंत्रित करना।
प्राथमिकताओं का निर्धारण: विभिन्न क्षेत्रों में धन का सही आवंटन।
प्रभावी कार्यान्वयन: बजट योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
4.मुख्य फसलें – देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न – सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली-कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएं; किसानों की सहायता के लिए ई-प्रौद्योगिकी।
1. मुख्य फसलें:
धान: मुख्य रूप से पूर्वी और दक्षिणी भारत में उगाई जाती है।
गेहूं: उत्तर और पश्चिमी भारत में प्रमुख फसल।
मक्का: मध्य और पश्चिमी भारत में उगाई जाती है।
गन्ना: उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और कर्नाटक में प्रमुख फसल।
कपास: गुजरात, महाराष्ट्र, और तेलंगाना में उगाई जाती है।
दलहन और तिलहन: राजस्थान, मध्य प्रदेश, और महाराष्ट्र में उगाई जाती हैं।
2. फसलों का पैटर्न:
खरीफ फसलें: मानसून के दौरान बोई जाती हैं, जैसे धान, मक्का, और सोयाबीन।
रबी फसलें: सर्दियों के दौरान बोई जाती हैं, जैसे गेहूं, चना, और सरसों।
जायद फसलें: गर्मियों के दौरान बोई जाती हैं, जैसे तरबूज, ककड़ी, और मूंग।
3. सिंचाई के प्रकार और प्रणाली:
कृत्रिम सिंचाई: नहर, ट्यूबवेल, और कुएं।
ड्रिप सिंचाई: पानी की बचत और फसल की जड़ों तक सीधे पानी पहुंचाना।
स्प्रिंकलर सिंचाई: पानी को छोटे-छोटे बूंदों के रूप में फसलों पर छिड़कना।
4. कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन, और विपणन:
भंडारण: गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, और साइलो।
परिवहन: सड़क, रेल, और जलमार्ग।
विपणन: मंडी, ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार), और सहकारी विपणन।
5. संबंधित विषय और बाधाएं:
कृषि उत्पाद की बर्बादी: खराब भंडारण और परिवहन सुविधाओं के कारण।
मूल्य अस्थिरता: बाजार में मांग और आपूर्ति के असंतुलन के कारण।
कृषि ऋण: किसानों के लिए ऋण की उपलब्धता और पुनर्भुगतान की समस्याएं।
6. किसानों की सहायता के लिए ई-प्रौद्योगिकी:
ई-नाम: राष्ट्रीय कृषि बाजार के माध्यम से किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त करना।
किसान कॉल सेंटर: किसानों को कृषि संबंधी जानकारी और सलाह प्रदान करना।
मोबाइल एप्स: फसल की जानकारी, मौसम पूर्वानुमान, और बाजार मूल्य की जानकारी प्रदान करना।
5.प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली-उददेश्य, कार्य, सीमाएं, सुधार; बफर स्टॉक तथा खादय सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु-पालन संबंधी अर्थशास्त्र
1. प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता:
प्रत्यक्ष सहायता: किसानों को सीधे वित्तीय सहायता, जैसे कि फसल बीमा, सब्सिडी, और ऋण माफी।
अप्रत्यक्ष सहायता: कृषि उपकरणों पर सब्सिडी, उर्वरकों और बीजों पर सब्सिडी, और सिंचाई सुविधाओं का विकास।
2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):
उद्देश्य: किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करना।
कार्य: सरकार द्वारा विभिन्न फसलों के लिए MSP की घोषणा और खरीद।
सीमाएं: MSP का सभी किसानों तक पहुंच न होना, और बाजार में मूल्य अस्थिरता।
3. जन वितरण प्रणाली (PDS):
उद्देश्य: गरीब और कमजोर वर्गों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
कार्य: राशन कार्ड के माध्यम से खाद्यान्न का वितरण।
सीमाएं: लीकेज, भ्रष्टाचार, और वितरण में असमानता।
सुधार: डिजिटलाइजेशन, आधार लिंकिंग, और पारदर्शिता बढ़ाना।
4. बफर स्टॉक और खाद्य सुरक्षा:
बफर स्टॉक: खाद्यान्न का भंडारण ताकि आपातकालीन स्थिति में उपयोग किया जा सके।
खाद्य सुरक्षा: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
चुनौतियाँ: भंडारण की कमी, खाद्यान्न की बर्बादी, और वितरण में असमानता।
5. प्रौद्योगिकी मिशन:
उद्देश्य: कृषि में तकनीकी सुधार और नवाचार को बढ़ावा देना।
कार्य: ड्रिप सिंचाई, जैविक खेती, और कृषि यंत्रीकरण।
उदाहरण: राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)।
6. पशु-पालन संबंधी अर्थशास्त्र:
उद्देश्य: पशु-पालन के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि।
कार्य: डेयरी विकास, पोल्ट्री फार्मिंग, और मछली पालन।
चुनौतियाँ: पशु स्वास्थ्य, बाजार की पहुंच, और वित्तीय सहायता।
6.भारत में खादय प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग – कार्यक्षेत्र एवं महत्व, स्थान, ऊपरी और नीचे की अपेक्षाएं, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन।
7.भारत में भूमि सुधार।
1. भूमि सुधार का परिचय:
परिभाषा: भूमि सुधार का अर्थ है भूमि के स्वामित्व, वितरण और उपयोग में सुधार लाना।
उद्देश्य: भूमि सुधार का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि, सामाजिक न्याय, और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना है।
2. भूमि सुधार के प्रमुख घटक:
जमींदारी प्रथा का उन्मूलन: जमींदारी प्रथा को समाप्त कर किसानों को भूमि का स्वामित्व प्रदान करना।
किरायेदारी सुधार: किरायेदार किसानों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें भूमि का स्वामित्व प्रदान करना।
सीलिंग कानून: भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारित करना और अतिरिक्त भूमि का पुनर्वितरण।
कंसोलिडेशन (चकबंदी): छोटे-छोटे भूखंडों को मिलाकर बड़े भूखंड बनाना ताकि कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सके।
3. भूमि सुधार के प्रयास:
स्वतंत्रता के बाद: स्वतंत्रता के बाद विभिन्न राज्यों में भूमि सुधार कानून बनाए गए और लागू किए गए।
केंद्र सरकार की पहल: केंद्र सरकार ने भूमि सुधार के लिए विभिन्न योजनाएँ और नीतियाँ बनाई, जैसे कि भूमि सुधार अधिनियम, 1955।
राज्य सरकार की पहल: विभिन्न राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में भूमि सुधार के लिए कानून बनाए और लागू किए।
4. भूमि सुधार की चुनौतियाँ:
प्रशासनिक बाधाएँ: भूमि सुधार कानूनों के कार्यान्वयन में प्रशासनिक बाधाएँ।
वित्तीय संसाधन: भूमि सुधार के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों की कमी।
सामाजिक और राजनीतिक बाधाएँ: भूमि सुधार के विरोध में सामाजिक और राजनीतिक बाधाएँ।
5. भूमि सुधार के प्रभाव:
कृषि उत्पादन में वृद्धि: भूमि सुधार के माध्यम से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
सामाजिक न्याय: भूमि सुधार के माध्यम से सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिला है।
ग्रामीण विकास: भूमि सुधार के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का विकास हुआ है।
8.उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औदयोगिक नीति में परिवर्तन तथा औदयोगिक विकास पर इनका प्रभाव।
1. उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
आर्थिक वृद्धि: उदारीकरण के बाद, भारत की आर्थिक वृद्धि दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। विदेशी निवेश और व्यापार में वृद्धि ने आर्थिक विकास को गति दी।
निजी क्षेत्र का विस्तार: सरकारी नियंत्रण में कमी और निजीकरण ने निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया, जिससे प्रतिस्पर्धा और उत्पादकता में सुधार हुआ।
विदेशी निवेश में वृद्धि: विदेशी निवेशकों के लिए नियमों को सरल बनाया गया, जिससे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में वृद्धि हुई।
वित्तीय सुधार: बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में सुधार हुए, जिससे वित्तीय स्थिरता और समावेशन में वृद्धि हुई।
2. औद्योगिक नीति में परिवर्तन:
नई औद्योगिक नीति 1991: लाइसेंस राज का अंत, विदेशी निवेश को प्रोत्साहन, और निजीकरण की दिशा में कदम।
विदेशी प्रौद्योगिकी और निवेश: विदेशी प्रौद्योगिकी और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों में बदलाव किए गए।
निजीकरण: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण किया गया, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी।
3. औद्योगिक विकास पर प्रभाव:
उत्पादन में वृद्धि: उदारीकरण और नई औद्योगिक नीतियों के कारण उत्पादन में वृद्धि हुई।
नवाचार और प्रौद्योगिकी: विदेशी प्रौद्योगिकी और निवेश ने नवाचार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुधार किया।
रोजगार के अवसर: औद्योगिक विकास ने रोजगार के नए अवसर पैदा किए।
क्षेत्रीय विकास: औद्योगिक विकास ने विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
बुनियादी ढांचा : ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
1. ऊर्जा:
उर्जा के स्रोत: पारंपरिक (कोयला, तेल, गैस) और गैर-पारंपरिक (सौर, पवन, जलविद्युत) ऊर्जा स्रोत।
ऊर्जा नीति: राष्ट्रीय ऊर्जा नीति, ऊर्जा सुरक्षा, और ऊर्जा संरक्षण।
ऊर्जा उत्पादन और वितरण: ऊर्जा उत्पादन के विभिन्न तरीके और वितरण प्रणाली।
2. बंदरगाह:
प्रकार: प्रमुख बंदरगाह और छोटे बंदरगाह।
बंदरगाह विकास: बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और विस्तार।
बंदरगाह प्रबंधन: बंदरगाह प्राधिकरण और निजीकरण।
3. सड़क:
राष्ट्रीय राजमार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP)।
राज्य राजमार्ग और ग्रामीण सड़कें: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)।
सड़क सुरक्षा: सड़क सुरक्षा उपाय और यातायात प्रबंधन।
4. विमानपत्तन:
विकास: हवाई अड्डों का विकास और आधुनिकीकरण।
प्रबंधन: भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) और निजीकरण।
नागरिक उड्डयन नीति: नागरिक उड्डयन नीति और क्षेत्रीय संपर्क योजना (UDAN)।
5. रेलवे:
विकास: रेलवे नेटवर्क का विस्तार और आधुनिकीकरण।
प्रबंधन: भारतीय रेलवे का प्रबंधन और निजीकरण।
रेलवे परियोजनाएँ: बुलेट ट्रेन परियोजना, समर्पित फ्रेट कॉरिडोर।
9.निवेश मॉडल।
1. निवेश मॉडल का परिचय:
परिभाषा: निवेश मॉडल का अर्थ है विभिन्न प्रकार के निवेश के तरीकों और संरचनाओं का अध्ययन।
उद्देश्य: निवेश को प्रोत्साहित करना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना।
2. निवेश मॉडल के प्रकार:
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI): विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार में निवेश।
संयुक्त उद्यम (Joint Ventures): दो या दो से अधिक कंपनियों के बीच साझेदारी।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी।
3. निवेश मॉडल के लाभ:
आर्थिक विकास: निवेश से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
रोजगार सृजन: निवेश से नए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विदेशी निवेश से नई प्रौद्योगिकी और नवाचार का आगमन होता है।
वित्तीय स्थिरता: निवेश से वित्तीय स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित होती है।
4. निवेश मॉडल की चुनौतियाँ:
नीतिगत बाधाएँ: निवेश के लिए अनुकूल नीतियों की कमी।
प्रशासनिक बाधाएँ: निवेश के कार्यान्वयन में प्रशासनिक बाधाएँ।
वित्तीय संसाधन: निवेश के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों की कमी।
सामाजिक और राजनीतिक बाधाएँ: निवेश के विरोध में सामाजिक और राजनीतिक बाधाएँ।
5. निवेश मॉडल के उदाहरण:
FDI: भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों द्वारा निवेश।
PPP: बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजनाएँ।
संयुक्त उद्यम: भारतीय और विदेशी कंपनियों के बीच साझेदारी।
10.विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी – विकास एवं अनुप्रयोग और रोजमर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।
1. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास:
इतिहास: विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास का इतिहास और प्रमुख वैज्ञानिक उपलब्धियाँ।
वर्तमान स्थिति: आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवीनतम प्रगति और अनुसंधान।
भविष्य की दिशा: भविष्य में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित विकास और चुनौतियाँ।
2. अनुप्रयोग:
स्वास्थ्य: चिकित्सा विज्ञान में नवीनतम तकनीकों का उपयोग, जैसे कि टेलीमेडिसिन, जैव प्रौद्योगिकी, और जीनोम संपादन।
कृषि: कृषि में प्रौद्योगिकी का उपयोग, जैसे कि जैविक खेती, ड्रोन तकनीक, और सटीक कृषि।
परिवहन: परिवहन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहन, स्वायत्त वाहन, और हाइपरलूप।
संचार: संचार के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग, जैसे कि 5G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और उपग्रह संचार।
3. रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव:
सुविधा: प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को अधिक सुविधाजनक और आरामदायक बना दिया है, जैसे कि स्मार्टफोन, स्मार्ट होम डिवाइस, और ऑनलाइन शॉपिंग।
स्वास्थ्य: चिकित्सा प्रौद्योगिकी ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार किया है।
शिक्षा: ऑनलाइन शिक्षा और ई-लर्निंग प्लेटफार्म ने शिक्षा को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाया है।
सुरक्षा: सुरक्षा प्रौद्योगिकी, जैसे कि सीसीटीवी, बायोमेट्रिक पहचान, और साइबर सुरक्षा ने हमारे जीवन को सुरक्षित बनाया है।
11.विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मैं भारतीयों की उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास
1. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ:
अंतरिक्ष अनुसंधान: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान और मंगलयान जैसी सफल मिशनों को अंजाम दिया है।
परमाणु ऊर्जा: भारत ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जैसे कि काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र।
स्वास्थ्य: भारतीय वैज्ञानिकों ने चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जैसे कि पोलियो वैक्सीन का विकास।
2. देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास:
जैव प्रौद्योगिकी: भारत में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान और विकास हो रहा है, जैसे कि जैविक खेती और जैव ईंधन।
सूचना प्रौद्योगिकी: भारत सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी है, जिसमें सॉफ्टवेयर विकास और आईटी सेवाएँ शामिल हैं।
स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी: भारत ने स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जैसे कि तेजस लड़ाकू विमान और अर्जुन टैंक।
3. नई प्रौद्योगिकी का विकास:
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): भारत में AI के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान और विकास हो रहा है, जिसमें मशीन लर्निंग और डेटा एनालिटिक्स शामिल हैं।
नवीन ऊर्जा स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास में भारत अग्रणी है।
साइबर सुरक्षा: साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिसमें साइबर सुरक्षा नीतियाँ और उपाय शामिल हैं
12.सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कम्प्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौदधिक सम्पदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध मैं जागरूकता।
सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology):
विकास और अनुप्रयोग: सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवीनतम प्रगति और अनुप्रयोग, जैसे कि क्लाउड कंप्यूटिंग, साइबर सुरक्षा, और डेटा एनालिटिक्स।
रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव: सूचना प्रौद्योगिकी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और व्यापार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।
2. अंतरिक्ष (Space):
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): ISRO की प्रमुख उपलब्धियाँ, जैसे कि चंद्रयान, मंगलयान, और गगनयान मिशन।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग: संचार उपग्रह, मौसम उपग्रह, और नेविगेशन प्रणाली।
3. कम्प्यूटर (Computers):
विकास और अनुप्रयोग: कम्प्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम प्रगति, जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग, और क्वांटम कंप्यूटिंग।
रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव: कम्प्यूटर ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और व्यापार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।
4. रोबोटिक्स (Robotics):
विकास और अनुप्रयोग: रोबोटिक्स के क्षेत्र में नवीनतम प्रगति, जैसे कि औद्योगिक रोबोट, चिकित्सा रोबोट, और सेवा रोबोट।
रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव: रोबोटिक्स ने विनिर्माण, स्वास्थ्य, और सेवा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।
5. नैनो-टैक्नोलॉजी (Nanotechnology):
विकास और अनुप्रयोग: नैनो-टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में नवीनतम प्रगति, जैसे कि नैनोमटेरियल्स, नैनोमेडिसिन, और नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स।
रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव: नैनो-टैक्नोलॉजी ने स्वास्थ्य, पर्यावरण, और ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।
6. बायो-टैक्नोलॉजी (Biotechnology):
विकास और अनुप्रयोग: बायो-टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में नवीनतम प्रगति, जैसे कि जीनोम संपादन, जैविक खेती, और जैव ईंधन।
रोजमर्रा के जीवन पर प्रभाव: बायो-टैक्नोलॉजी ने कृषि, स्वास्थ्य, और पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।
7. बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights):
परिभाषा और महत्व: बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का परिभाषा और उनका महत्व।
प्रकार: पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, और डिज़ाइन अधिकार।
भारत में बौद्धिक सम्पदा अधिकार: भारतीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार कानून और नीतियाँ।
13.संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन
1. संरक्षण:
जैव विविधता संरक्षण: जैव विविधता के महत्व और संरक्षण के उपाय।
वन्यजीव संरक्षण: वन्यजीव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, और बायोस्फीयर रिजर्व।
जल संरक्षण: जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन।
मृदा संरक्षण: मृदा अपरदन को रोकने के उपाय और मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखना।
2. पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण:
वायु प्रदूषण: वायु प्रदूषण के स्रोत, प्रभाव, और नियंत्रण के उपाय।
जल प्रदूषण: जल प्रदूषण के स्रोत, प्रभाव, और नियंत्रण के उपाय।
मृदा प्रदूषण: मृदा प्रदूषण के स्रोत, प्रभाव, और नियंत्रण के उपाय।
ध्वनि प्रदूषण: ध्वनि प्रदूषण के स्रोत, प्रभाव, और नियंत्रण के उपाय।
पर्यावरण क्षरण: पर्यावरण क्षरण के कारण और इसके प्रभाव।
3. पर्यावरण प्रभाव का आकलन (EIA):
परिभाषा: पर्यावरण प्रभाव आकलन का अर्थ और महत्व।
प्रक्रिया: EIA की प्रक्रिया, जिसमें प्रारंभिक आकलन, विस्तृत अध्ययन, और सार्वजनिक सुनवाई शामिल हैं।
विधिक ढांचा: EIA के लिए कानूनी ढांचा और नीतियाँ।
प्रभाव: परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन और उन्हें कम करने के उपाय।
14.आपदा और आपदा प्रबंधन।
1. आपदा का परिचय:
परिभाषा: आपदा का अर्थ है ऐसी घटनाएँ जो अचानक होती हैं और जिनसे व्यापक क्षति होती है।
प्रकार: प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़, चक्रवात) और मानवजनित आपदाएँ (रासायनिक दुर्घटनाएँ, परमाणु दुर्घटनाएँ)।
2. आपदा प्रबंधन:
आपदा प्रबंधन का अर्थ: आपदा के पूर्व, दौरान, और बाद में किए जाने वाले कार्यों का समुच्चय।
चरण: आपदा प्रबंधन के चार प्रमुख चरण होते हैं - शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया, और पुनर्वास।
3. आपदा प्रबंधन के घटक:
शमन: आपदा के प्रभाव को कम करने के उपाय, जैसे कि बाढ़ नियंत्रण, भूकंप प्रतिरोधी निर्माण।
तैयारी: आपदा के लिए तैयार रहने के उपाय, जैसे कि आपदा प्रबंधन योजनाएँ, प्रशिक्षण, और अभ्यास।
प्रतिक्रिया: आपदा के दौरान की जाने वाली कार्रवाई, जैसे कि बचाव और राहत कार्य।
पुनर्वास: आपदा के बाद की जाने वाली कार्रवाई, जैसे कि पुनर्निर्माण और पुनर्वास।
4. आपदा प्रबंधन के लिए संस्थाएँ:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ बनाना।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ बनाना।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA): जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ बनाना।
5. आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP): आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बनाई गई योजना।
राज्य आपदा प्रबंधन योजना (SDMP): राज्य स्तर पर बनाई गई योजना।
जिला आपदा प्रबंधन योजना (DDMP): जिला स्तर पर बनाई गई योजना।
6. आपदा प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग:
GIS और रिमोट सेंसिंग: आपदा प्रबंधन के लिए भू-स्थानिक जानकारी और रिमोट सेंसिंग का उपयोग।
ड्रोन: आपदा के दौरान निगरानी और राहत कार्यों के लिए ड्रोन का उपयोग।
संचार प्रौद्योगिकी: आपदा के दौरान संचार के लिए मोबाइल एप्स और सोशल मीडिया का उपयोग।
15.विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध।
1. विकास और उग्रवाद का परिचय:
परिभाषा: विकास का अर्थ है आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक प्रगति, जबकि उग्रवाद का अर्थ है हिंसात्मक और चरमपंथी गतिविधियाँ।
उद्देश्य: विकास का उद्देश्य समाज की समृद्धि और स्थिरता को बढ़ावा देना है, जबकि उग्रवाद का उद्देश्य असंतोष और अस्थिरता फैलाना है।
2. विकास और उग्रवाद के बीच संबंध:
आर्थिक असमानता: आर्थिक असमानता और गरीबी उग्रवाद के प्रमुख कारणों में से एक हैं। विकास की कमी से लोग असंतुष्ट होते हैं और उग्रवादी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.
शिक्षा और रोजगार: शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी भी उग्रवाद को बढ़ावा देती है। विकास के माध्यम से शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाकर उग्रवाद को कम किया जा सकता है.
सामाजिक न्याय: सामाजिक न्याय की कमी और भेदभाव भी उग्रवाद के कारण हो सकते हैं। विकास के माध्यम से सामाजिक न्याय को बढ़ावा देकर उग्रवाद को नियंत्रित किया जा सकता है.
3. उग्रवाद के प्रभाव:
सामाजिक अस्थिरता: उग्रवाद से समाज में अस्थिरता और हिंसा फैलती है, जिससे विकास की प्रक्रिया बाधित होती है।
आर्थिक नुकसान: उग्रवाद से आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं, जिससे आर्थिक विकास में बाधा आती है।
सुरक्षा चुनौतियाँ: उग्रवाद से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होता है और सुरक्षा बलों पर दबाव बढ़ता है।
4. उग्रवाद को रोकने के उपाय:
समावेशी विकास: समावेशी विकास के माध्यम से आर्थिक असमानता को कम करना और सभी वर्गों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना।
शिक्षा और रोजगार: शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाकर युवाओं को उग्रवादी गतिविधियों से दूर रखना।
सामाजिक न्याय: सामाजिक न्याय को बढ़ावा देकर भेदभाव और असंतोष को कम करना।
सुरक्षा उपाय: सुरक्षा बलों को सशक्त बनाना और उग्रवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना।
16.आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्वों की भूमिका।
1. आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न करने वाले तत्व:
नक्सलवाद: नक्सलवादी समूहों द्वारा हिंसात्मक गतिविधियाँ और उनके कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ।
आतंकवाद: आतंकवादी संगठनों द्वारा किए गए हमले और उनके कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ।
उग्रवाद: उग्रवादी समूहों द्वारा हिंसात्मक गतिविधियाँ और उनके कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ।
साइबर हमले: साइबर अपराधियों द्वारा किए गए हमले और उनके कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ।
साम्प्रदायिक हिंसा: साम्प्रदायिक समूहों द्वारा हिंसात्मक गतिविधियाँ और उनके कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ।
2. शासन विरोधी तत्वों की भूमिका:
विचारधारा: शासन विरोधी तत्वों की विचारधारा और उनके उद्देश्यों का विश्लेषण।
संगठन: शासन विरोधी तत्वों के संगठन और उनकी संरचना।
रणनीति: शासन विरोधी तत्वों की रणनीति और उनके कार्य करने के तरीके।
प्रभाव: शासन विरोधी तत्वों के कारण उत्पन्न सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक प्रभाव।
3. आंतरिक सुरक्षा के लिए उपाय:
सुरक्षा बलों की भूमिका: पुलिस, अर्धसैनिक बल, और सेना की भूमिका।
नीतियाँ और योजनाएँ: आंतरिक सुरक्षा के लिए बनाई गई नीतियाँ और योजनाएँ।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: सुरक्षा के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग, जैसे कि ड्रोन, सीसीटीवी, और साइबर सुरक्षा।
सामाजिक और आर्थिक विकास: शासन विरोधी तत्वों के प्रभाव को कम करने के लिए सामाजिक और आर्थिक विकास के उपाय।
17.संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों मैं मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका , साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
1. संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती:
संचार नेटवर्क का दुरुपयोग: आतंकवादी और उग्रवादी समूह संचार नेटवर्क का उपयोग करके अपने संदेश फैलाते हैं और हमलों की योजना बनाते हैं।
साइबर हमले: संचार नेटवर्क के माध्यम से साइबर हमले किए जाते हैं, जिससे महत्वपूर्ण डेटा चोरी और नेटवर्क बाधित होते हैं।
सूचना युद्ध: संचार नेटवर्क का उपयोग करके गलत सूचना फैलाना और समाज में अस्थिरता पैदा करना।
2. आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका:
सूचना का प्रसार: मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटें सूचना के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन कभी-कभी गलत सूचना और अफवाहें भी फैलती हैं।
जनमत निर्माण: मीडिया और सोशल मीडिया जनमत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता हो सकती है।
निगरानी और नियंत्रण: सरकारें मीडिया और सोशल मीडिया पर निगरानी और नियंत्रण के उपाय करती हैं ताकि गलत सूचना और अफवाहों को रोका जा सके।
3. साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें:
परिभाषा: साइबर सुरक्षा का अर्थ है कंप्यूटर सिस्टम, नेटवर्क, और डेटा को साइबर हमलों से सुरक्षित रखना।
मुख्य घटक: फायरवॉल, एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर, एन्क्रिप्शन, और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन।
साइबर हमले के प्रकार: फ़िशिंग, मालवेयर, रैनसमवेयर, और डिनायल-ऑफ-सर्विस (DoS) हमले।
साइबर सुरक्षा नीतियाँ: राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, साइबर सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम, और साइबर सुरक्षा कानून।
4. धन-शोधन और इसे रोकना:
परिभाषा: धन-शोधन का अर्थ है अवैध रूप से अर्जित धन को वैध स्रोतों से प्राप्त धन के रूप में प्रस्तुत करना।
प्रक्रिया: धन-शोधन की प्रक्रिया में तीन चरण होते हैं - प्लेसमेंट, लेयरिंग, और इंटीग्रेशन।
नियंत्रण के उपाय: धन-शोधन को रोकने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं, जैसे कि एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) कानून, वित्तीय खुफिया इकाइयाँ (FIUs), और ग्राहक पहचान प्रक्रिया (KYC)।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: धन-शोधन को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समझौतों की आवश्यकता होती है, जैसे कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)।
18.सीमावर्ती क्षेत्रों मैं सुरक्षा चुनौतियां एवं उनका प्रबंधन – संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध!
1 सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ:
अवैध घुसपैठ: सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध घुसपैठ और इसके कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ।
तस्करी: हथियार, मादक पदार्थ, और मानव तस्करी जैसी गतिविधियाँ।
सीमा विवाद: पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद और इसके कारण उत्पन्न तनाव।
आतंकवाद: सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकवादी गतिविधियाँ और उनके प्रभाव।
2. सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रबंधन:
सीमा सुरक्षा बल (BSF): सीमा सुरक्षा बल की भूमिका और कार्य।
सीमा प्रबंधन: सीमा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: सीमा सुरक्षा के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग, जैसे कि ड्रोन, सीसीटीवी, और सेंसर्स।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: पड़ोसी देशों के साथ सहयोग और समझौते।
3. संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध:
वित्तीय संबंध: संगठित अपराध और आतंकवादी संगठनों के बीच वित्तीय संबंध।
लॉजिस्टिक समर्थन: संगठित अपराधी आतंकवादी संगठनों को लॉजिस्टिक समर्थन प्रदान करते हैं।
सामाजिक अस्थिरता: संगठित अपराध और आतंकवाद के कारण समाज में अस्थिरता और हिंसा फैलती है।
नियंत्रण के उपाय: संगठित अपराध और आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए नीतियाँ और योजनाएँ।
19.विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएं तथा उनके अधिदेश
1. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF):
सीमा सुरक्षा बल (BSF): भारत की सीमाओं की सुरक्षा और अवैध घुसपैठ को रोकना।
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF): आंतरिक सुरक्षा, नक्सलवाद, और आतंकवाद से निपटना।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF): औद्योगिक इकाइयों, हवाई अड्डों, और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा।
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP): भारत-तिब्बत सीमा की सुरक्षा और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में गश्त।
सशस्त्र सीमा बल (SSB): नेपाल और भूटान की सीमाओं की सुरक्षा।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG):
उद्देश्य: आतंकवाद विरोधी अभियानों और विशेष सुरक्षा कार्यों के लिए।
कार्य: आतंकवादी हमलों, बंधक स्थितियों, और अन्य उच्च जोखिम वाले अभियानों से निपटना।
3. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA):
उद्देश्य: आतंकवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अपराधों की जांच।
कार्य: आतंकवादी गतिविधियों की जांच, सबूत जुटाना, और अभियोजन करना।
4. खुफिया ब्यूरो (IB):
उद्देश्य: आंतरिक सुरक्षा और खुफिया जानकारी जुटाना।
कार्य: आतंकवाद, उग्रवाद, और अन्य आंतरिक सुरक्षा खतरों की निगरानी।
5. अनुसंधान और विश्लेषण विंग (RAW):
उद्देश्य: बाहरी खुफिया जानकारी जुटाना और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना।
कार्य: विदेशी खुफिया जानकारी जुटाना, विश्लेषण करना, और सरकार को रिपोर्ट करना।
6. राज्य पुलिस बल:
उद्देश्य: राज्य स्तर पर कानून और व्यवस्था बनाए रखना।
कार्य: अपराधों की जांच, कानून व्यवस्था बनाए रखना, और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
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